Chiranjiv and Ayushmati Meaning

शादी का दौर चल रहा है हर घर में व किसी न किसी रिश्तेदार की यंहा शादी की तैयारियां होती ही है और वहां से विवाह की कुमकुम, चावल के सगुन के साथ आमंत्रण होता है। विवाह पत्रिका में विवाह आयोजन से जुडी डिटेल और दूल्हा दुल्हन की परिवार की लोगो की भी जानकारी होती है लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है की शादी के कार्ड में लड़के के नाम के साथ चिरंजीव व लड़की के नाम के साथ आयुष्मती क्यों लिखा जाता है (Chiranjiv and Ayushmati Meaning) – 

Chiranjiv and Ayushmati Meaning –

क्यों लिखते है चिरंजीव

एक संतान हीन ब्राह्मण था उसने संतान की प्राप्ति के लिए माता जी की तपस्या करी। माता जी तपस्या से खुश हुई और ब्राह्मण को कहा की तुम जो चाहो वो वरदान मुझसे मांग सकते हो। ब्राह्मण ने वरदान स्वरुप पुत्र माँगा। माता जी ने उस ब्राह्मण से कहा मेरे पास दो तरह के पुत्र (पहला को जीवन भर मुर्ख रहेगा और 10 हजार वर्ष तक जिएगा और दूसरा बहुत बड़ा विद्वान होगा परन्तु केवल 15 वर्ष तक की आयु तक ही जिएगा) है तुम्हे कौनसा पुत्र स्वीकार है ब्राह्मण ने कहा मुझे विद्वान पुत्र स्वीकार है। माँ ने आशीर्वाद दिया और वहां से चले गई।

कुछ समय बाद ब्राह्मण की पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया। कुछ साल बीत जाने के बाद ब्राह्मण ने अपने पुत्र को विद्या प्राप्त करने के लिए काशी भेज दिया। काशी में एक सेंठ को वह ब्राह्मण पुत्र अपनी पुत्री के लिए पसंद आ गया और उसने उनके विवाह करने का तय किया, दोनों का विवाह हो गया। जिस दिन उनकी शादी हुई थी वहीँ रात उस ब्राह्मण के पुत्र के जीवन की आखरी रात थी। उसी रात उसे एक सांप ने डस लिया और उसकी मृत्यु हो गयी । उसकी पत्नी ने सांप को पकड़ कर एक मटकी में बंद कर दिया।

उसकी पत्नी माताजी की भक्त थी उसने माँ जगदम्बा की आराधना शुरू की ताकि उसके पति को जीवनदान मिल सके।आराधना करते हुए एक महीने से ज्यादा का समय हो गया पत्नी के सतीत्व से श्रृष्टि में त्राहि-त्राहि मच गई इसलिए देवताओं ने माँ से प्रार्थना की।

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माता जगदम्बा उस ब्राह्मण की पत्नी के सामने प्रकट हुई और बोली बेटी.. जिस नाग को तूने कमंडल में बंद किया है वह कोई नहीं स्वयं यमराज है उनके बिना श्रृष्टि का चक्र रुक जाएगा इसलिए उन्हें आजाद कर दो। माता की आज्ञा का पालन करते हुए उसने यमराज को आजाद कर दिया। यमराज ने माता और ब्राह्मण की पत्नी के सतीत्व को प्रणाम किया। माता ने यमराज को आदेश दिया की ब्राह्मण के प्राण वापस कर दे और माँ ने जाते-जाते उस ब्राह्मण के पुत्र को चिरंजीव रहने का वरदान दिया और उसे चिरंजीव नाम से पुकारा ।

तभी से लड़के के नाम के आगे चिरंजीव शब्द का प्रयोग करने की प्रथा शुरू हुई जिसका अर्थ होता है बहुत लम्बी आयु वाला ।

क्यों लिखते है आयुष्मती

एक आकाश धर नाम का राजा था उसके यहाँ कोई औलाद नहीं थी । नारद जी ने उन्हें सुझाव दिया की सोने के हल से भूमि का दोहन करो फिर उस पर यज्ञ करो। राजा ने वैसा ही किया और उसे भूमि से कन्या प्रकट हुई। वह कन्या को लेकर महल आ गया उस महल में एक शेर खड़ा था । वह कन्या को अपना शिकार बनाना चाहता था। राजा के हाथ से कन्या छुट गई और शेर ने कन्या को मुहं में पकड़ लिया। उसी समय वह शेर कमल पुष्प में बदल गया और विष्णु भगवान प्रकट हुए उन्होंने अपने हाथ से उस कमल को स्पर्श किया व स्पर्श करते ही कमल पुष्प यमराज बनकर प्रकट हुए और कन्या 25 वर्ष की युवती बन गई।

राजा ने उस कन्या का विवाह विष्णु जी से किया। यमराज ने उस कन्या को आयुष्मती नाम दिया व आयुष्मती होने का वरदान दिया। तब से विवाह पत्रिका में कन्या के नाम के आगे आयुष्मती लिखा जाता है। 

आपने जाना –

Chiranjiv and Ayushmati Meaning में आपने जाना की शादी की पत्रिका में चिरंजीव और आयुष्मती का क्या मतलब होता है जो की आप अक्सर शादी के इनविटेशन कार्ड में देखते ही होंगे। उम्मीद करते है आपको यह दिलचस्प जानकरी बेहद पसंद आयी होगी तो प्लीज इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे।

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