Vat Savitri Vrat Katha | अखंड सौभाग्य देती है सावित्री व सत्यवान की कथा

आज के आर्टिकल में वट सावित्री व्रत की कथा (Vat Savitri Vrat Katha) का वर्णन किया जा रहा है। बिना कथा पढ़े यह व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है इलसिए इस कथा को जरुर पढ़े इसका फल अखंड सौभाग्य दायक होता है


Vat Savitri Vrat Katha –

एक कथा के अनुसार मग्द देश में एक अश्वपति नाम का राजा था, वह परम प्रतापी था। उन्हें कन्या के रूप में सावित्री जैसी सर्वगुण संपन्न बेटी रूपी धन की प्राप्ति हुई थी। सावित्री बढ़ी हुई और विवाह के योग्य हो गई तब उनके पिता राजा अश्वपति ने उन्हें स्वयं से अपना पति का चुनाव करने को कहा…

एक दिन नारद मुनि राजा अश्वपति के घर आये। राजा ने नारद जी को सावित्री से कही हुई बात बताई। उसी समय सावित्री भी अपने पसंद के वर का चुनाव करके लौटी। उसने नारद जी को प्रणाम किया।

तब नारद जी ने सावित्री से पूछा की उसने किसको अपने वर के रूप में चुना है बताओं ?…

सावित्री ने उत्तर में कहा –

हे मुनीश्वर.. मैंने राजा द्युमत्सेन जिनका राज्य पाठ हर लिया गया है, जो की अंधे है और अपनी पत्नी के साथ वनों में भटक रहे है मैं उन्ही के एकलौते पुत्र सत्यवान से विवाह करना चाहती हूँ उन्हें ही पति के रूप में वरण करना चाहती हूँ। (Savitri Katha)

नारद जी ने अपने दिव्य ज्ञान से सत्यवान और सावित्री के ग्रहों को समझ कर उनके भविष्य का पता लगा लिया था यह समझकर राजा से नारद मुनि ने कहा..

‘हे राजन’ तुम्हारी कन्या ने एक बहुत ही योग्य वर का चयन किया है। सत्यवान गुणी और धर्म-कर्म करने वाला व्यक्ति है, वह सावित्री के लिए योग्य है पर एक बहुत भारी संकट है की उसके जीवन की आयु कम है एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु निश्चित है।

नारद जी के वचन सुन राजा ने अपनी पुत्री से किसी और वर का चुनाव करने को कहा..

इस पर सावित्री ने कहा –

पिताश्री आर्य कन्यायें अपने जीवनकाल में एक बार ही पति का चुनाव करती है। मैंने भी सत्यवान को अपने पति के रूप में मान लिया है। अब फिर वह अल्पायु हो या दीर्घायु इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अब मैं किसी अन्य पुरुष को अपने मन में स्थान नहीं दे सकती। (Vat Savitri Vrat Katha)

सावित्री ने आगे कहा –

राजा एक ही बार आज्ञा देता है, आर्य कन्यायें एक ही बार अपने वर का चयन करती है, पंडित एक ही बार प्रतिज्ञा धारण करते है, कन्यादान भी एक ही बार होता है अब जो चाहे हो जाये मेरे पति सत्यवान ही होंगे। (Vat Savitri Story)

सावित्री के ऐसे कठोर वचन सुन राजा ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया। सावित्री ने नारद मुनि से सत्यवान की मृत्यु का समय पता कर लिया था। वह भी वन में रहकर अपने सास ससुर के सेवा करने लगी। जैसे-जैसे समय बीतता गया नारद जी की कहीं बातें सावित्री को और ज्यादा परेशान करने लगी।

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नारद जी के कहे अनुसार जब सत्यवान के जीवन के अंतिम तीन दिवस ही बचे थे तभी से सावित्री अपने पति के जीवन की वृद्धि के लिए व्रत करने लगी। नारद द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार वह पितरों का पूजन करने लगी। हर रोज के तरह उस दिन भी जब सत्यवान लकड़ी काटने चला तो अपने सास-ससुर से आज्ञा लेकर वह भी वन में चली गई। (Vat Purnima Story)

सत्यवान वन में पहुंचकर लकड़ियाँ काटने लगा उसी समय उसके सर में दर्द होने लगा। वह उसी समय वृक्ष ने निचे उतरकर तड़पने लगा। यह देख सावित्री का हृदय भी जोरों से कांपने लगा, उसने उसी समय सत्यवान को एक बरगद के पेड़ के निचे लेता दिया और उसके सिर को अपने गोद में रख लिया। तभी उसे दक्षिण दिशा से यमराज का आगमन होते दिखाई दिया।

यमराज उसके पति के प्राण लेकर चल दिए। तभी सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी जब यमराज ने उसे देखा तो सावित्री को लौट जाने को कहा परन्तु…

सावित्री ने कहा –

हे यमदेव एक पत्नी का यह धर्म है की वो अपने पति का अनुसरण करे। अपने पति के पीछे चलना ही एक स्त्री का मुख्य कर्तव्य है। पतिव्रत के प्रभाव से और अपने आशीर्वाद से कोई भी मेरी गति पर विराम नहीं लगा सकता, यह मेरी मर्यादा है। (Vat savitri katha in hindi)

सावित्री के धर्म युक्त वचनों का श्रवण करके यमराज ने सावित्री को कोई वर मांगने को कहा.. परन्तु शर्त रखी की वो सत्यवान के प्राणों की मांग नहीं कर सकती।

सावित्री ने उस समय अपने सास ससुर के आखों की रौशनी और उनकी दीर्घायु मांगी यमराज ने उसे तथास्तु कहा और आगे चल दिए फिर भी सावित्री यमदेव का पीछा करती रही। यमराज ने उसे वापस जाने को कहा…

इस पर सावित्री ने जवाव दिया है धर्मराज मुझे अपने पति का अनुसरण करने में समस्या नहीं है और हम पति-पत्नी है हम भिन्न भिन्न मार्ग पर कैसे जा सकते है। पति का अनुगमन मेरे जीवन का परम कर्तव्य है।

यमराज ने सावित्री के पतिव्रता धर्म की निष्ठा देख पुनः वर मांगने को कहा.. इस बार सावित्री ने अपने सास-ससुर के खोये राज्य और खुद को सौ भाइयों की बहन होने का वर माँगा। यमराज ने फिर तथास्तु कहा और वे आगे चल दिए लेकिन अभी भी सावित्री ने यमराज का पीछा नहीं छोड़ा यह देख यमराज ने फिर से उसे लौटने का आग्रह किया पर वह अपने वचनों पर अडिग रही। तब..

धर्मराज यमदेव ने कहा –

‘हे देवी’ क्या तुम्हारे मन में अभी भी कोई कामना है तो बताओं। आप जो मांगोगी आपको वही मिलेगा।

इस पर सावित्री ने कहा – यदि आप सच में मुझे कोई वरदान देना चाहते है तो कृपया करके मुझे सौ पुत्रों की माँ होने का वर दे। यमराज ने उसे तथास्तु का कहा और फिर से आगे प्रस्थान करने लगे..

यमराज ने जाते-जाते फिर पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री अभी भी उनके पीछे आ रही थी यह देख यमदेव ने सावित्री से कहा – ‘हे देवी’ अब हमारे मार्ग में बाधा मत डालों मैं तुम्हे तुम्हारी इच्छा के अनुकूल वर दे चूका हूँ अब भी तुम हमारा पीछा क्यों कर रही हो ?…

सावित्री ने कहा –

‘हे यमदेव’ आपने अभी मुझे सौ पुत्रों की माँ होने का वर दिया है पर आप ही बताइए मैं अपने पति के बिना संतान को जन्म कैसे दे सकती हूँ मुझे अपने पति पुनः वापस मिलना ही चाहिए तभी आपके वरदान की सार्थकता होगी।

सावित्री के पतिव्रता, धर्मनिष्ट और शुक्तिपूर्ण वचनों को सुन यमदेव ने सत्यवान के प्राण को मुक्त कर दिया और सावित्री को आशीर्वाद देकर अपने लोक को चल दिए। (Sati Savitri Vrat Katha)

इधर सावित्री सत्यवान के पास पहुंची और जिस बरगद के पेड़ के निचे सावित्री ने सत्यवान को लिटा रखा था उस पेड़ को प्रणाम करके उसने बरगद के वृक्ष की परिक्रमा आरम्भ की। जैसे ही सावित्री ने परिक्रमा पूर्ण की सत्यवान के मृत शरीर में प्राण आ गये।

सावित्री ने सत्यवान को पूरी बात बताई। दोनों ख़ुशी-ख़ुशी घर लौट आये। सत्यवान के माता-पिता की आखों की रौशनी वापस आ गई। द्युमत्सेन को फिर से अपना राज्य और राज सिंघासन मिल गया। उधर सावित्री के पिता को सौ पुत्रों का सौभाग्य मिला और सावित्री सौ भाइयों को बहन बनी। वहीँ सावित्री को भी सौ पुत्रों की प्राप्ति हुई। इस तरह से सावित्री ने अपने कुल और पितृकुल दोनों का कल्याण किया और इस तरह सावित्री के इस पतिव्रत धर्म के पालन की प्रसंशा सभी दिशाओं में फैलने लगी।

आपने जाना

Vat Savitri Vrat Katha में आज आपको हमने सावित्री और सत्यवान के जीवन की उस घटना के बारे में बताया जिसके बाद से वट सावित्री व्रत का आरम्भ हुआ उम्मीद करते है आपको यह कथा का वर्णन अच्छा लगा तो प्लीज इसे शेयर करना न भूले


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