Devshayani Ekadashi Date 2022, Vrat Katha, Puja vidhi, Significance :- हर वर्ष 24 एकादशियाँ होती है परन्तु हर एकादशी का फल भिन्न-भिन्न होता है। एकादशी का व्रत धारण करने से मनुष्य इस लोक के भोगों से व परलोक से मुक्ति पाता है। आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में पढने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है…
हमारे हिन्दू धर्म में व्रत (Vrat 2022) का बहुत महत्त्व है और हिन्दू ही नहीं बल्कि दुनिया के सभी धर्मों में व्रत और उपवास का महत्त्व बताया गया है। व्रत को करने से मन की शुद्धि होती है इन्हें धारण करके व्यक्ति अपने जन्मो के पापों से मुक्ति पा जाता है व उसके पुण्य का उदय होने लगता है। तन-मन में शांति का अनुभव होने लगता है इन्द्रियों पर व्यक्ति का नियंत्रण होने लगता है।
कई पवित्र व्रतों का उल्लेख हमारे शास्त्रों में किया गया है जिनका अलग-अलग फल मनुष्य को मिलता है परन्तु सबसे उत्तम व्रत की बात की जाए तो एकादशी व्रत सबसे श्रेष्ट होता है जिसका महात्म तो स्वयं भगवान कृष्ण ने कहा है। हर वर्ष 24 एकादशियाँ होती है परन्तु हर एकादशी का फल भिन्न-भिन्न होता है। एकादशी का व्रत धारण करने से मनुष्य इस लोक के भोगों से व परलोक से मुक्ति पाता है।
What is Devshayani Ekadashi (देवशयनी एकादशी क्या है)
आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष में पढने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन को ही चातुर्मास का शुरूआती दिन कहा जाता है क्योकि इस दिन से भगवान विष्णु पाताल लोक के राजा बलि के महल में निवास करके व शयन करते है। वहीं, दूसरी ओर वे कार्तिक शुक्ल की देव उठनी एकादशी को वे पुनः पृथ्वी लोग पर आते है। इस एकादशी को कार्तिक शुक्ल एकादशी, देवोत्थानी एकादशी व प्रबोधिनी एकादशी (Prabodhini Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है।
हरिशयन से प्रकृति में कई बदलाव जैसे की बादल और वर्षा के प्रभाव से सूर्य चंद्रमा का तेजस्वी गुण कम होने लगता है। यही प्रभु के शयन का प्रतिक है चूँकि इस अंतराल में भगवान शयन पर होते है तो सभी मंगल कार्य को करना निषेध होता है जैसे विवाह, दीक्षा लेना, यज्ञ का आयोजन, गृहप्रवेश, गोदान आदि सभी कार्यों को इस समय करना मना किया गया है।
Devshayani Ekadashi Vrat Katha (देवशयनी एकादशी व्रत कथा) –
ब्रह्मा जी से एक बार देवऋषि नारद ने देवशयनी एकादशी के सम्बन्ध में जानने की इच्छा व्यक्त की उनके इस आग्रह को उनके पिता ने स्वीकार किया और उन्हें इस एकादशी की विशेष कथा कही जिसके अनुसार सतयुग में एक मांधाता नाम का एक राजा का शासन था उनके राज्य में सभी जन बेहद सुखी थे किन्तु भविष्य के गर्भ में क्या है यह किसी को ज्ञात नहीं। वे इस बात से अनजान थे की उनके राज्य में बहुत जल्द ही अकाल का संकट उत्पन्न होने वाला है। होनी के अनुसार उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा का अभाव रहा जिसके कारण अकाल पढ़ गया क्योकिं धरती से अनाज का उत्पादन बंद हो गया।
इस हालात में राज्य में त्राहि-त्राहि का शोर गूंजने लगा। जब संकट बढ़ने लगा तो तो सभी का ध्यान धार्मिक कार्यों से हट गया और ऐसे में भूखे पेट कोई जीव भक्ति में भी ध्यान कैसे लगा सकता है राजा को जब अपने राज्य की हालात का पता लगा तो वे इससे बेहद दुखी हुए। वे इसपर विचार करने लगे की मुझसे ऐसा कौनसा पाप हुआ जिसके कारण मुझे और मेरे संतान रूपी प्रजा को इसका दंड भुगतना पड़ रहा है
बहुत विचार के बाद इस समस्या के समाधान के लिए राजा अपनी सेना को लेकर जंगल की ओर निकल पड़े और पुत्र तुम्हारे भाई अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे। राजन ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। अंगिरा ऋषि ने उस राजा को आशीर्वाद दिया व उनसे जंगल में आने का व आश्रम आकर उनसे मिलने का उद्देश्य बताने को कहा।
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तब राजा ने अपने दोनों हाथों को जोड़कर अंगिरा ऋषि से कहा.. हे महात्मा! में सभी प्रकार के धर्मो का पालना करता हूँ फिर भी मेरे राज्य की दशा बुरी होती जा रही है। ऐसा क्यों हो रहा? मेरे किन पापकर्मो की सजा मेरी प्रजा भुगत रही है और इसका समाधान क्या है? कृपया कर मुझे बताइए। इस पर महर्षि अंगिरा ने कहा.. राजन सतयुग सभी युग में सबसे उत्तम युग है इस युग में चारों चरणों में धर्म विद्यमान होता है। Devshayani Ekadashi Vrat Katha
चारों वर्णों को अपना कार्य सौपा गया है जिसमे ब्राहमण का कार्य तप करना है व किसी अन्य वर्ण को तप करने का अधिकार नहीं दिया गया है परन्तु आपके राज्य में एक शुद्र तपस्या में लीन है। आपके राज्य में जो अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई है वह उसी तप का दुष्प्रभाव है। जब तक उसकी मृत्यु नहीं होगी तब तक आपके राज्य की दुर्दशा का अंत नहीं होगा किन्तु राजन का हृदय एक नीर अपराध शुद्र को मृत्यु दंड देने के लिए तैयार नहीं हो रहा था उन्होंने ऋषिवर से कहा हे महात्मा! मैं उस निरपराध जीव को मार दूँ? इस कार्य को करने से मेरा मन इंकार कर रहा है कृपा कर कोई और उपाय कहे। मैं आपका ऋणी रहूँगा।
महर्षि मंगीरा ने कहा तुम आषाढ़ महीने में पड़ने वाली शुक्लपक्ष वाली एकादशी का व्रत करों। उसके प्रभाव से निश्चित ही वर्षा का आगमन होगा। राजा इस उपाय को जान बेहद खुश हुआ। उन्हें महात्मा का धन्यवाद ज्ञापित किया और अपने राज्य लौट आये। महर्षि के कहे अनुसार राजन ने इस एकादशी का विधि से पालन किया। व्रत के प्रभाव के फल के रूप में उन्हें राज्य में वर्षा का आगमन हो गया, खेत फिर लहराने लगे और एक बार फिर पूरा राज्य धन-धान्य से पूर्ण हो गया।
Devshayani Ekadashi Vrat 2022 Date (देवशयनी एकादशी कब है)
इस वर्ष देवशयनी एकादशी जुलाई माह में 10 तारीख को है इस दिन रविवार रहेगा।
एकादशी तिथि आरंभ – 09 July, 2022 04:40 संध्या
एकादशी तिथि समाप्त – 10 July, 2022 02:14 दोपहर
उदयकालीन तिथि के अनुसार एकादशी व्रत 10 जुलाई को रखा जाएगा।
Devshayani Ekadashi Vrat Significance (देवशयनी एकादशी का महत्त्व)
पद्मपुराण के अनुसार इस दिन व्रत धारण करने से जाने या अनजाने हुए सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन जो भी व्यक्ति पुरे श्रद्धा और विधि विधान से भगवान का पूजन अर्चन करता है उसे मोक्ष मिलता है व उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
Ekadashi Puja Vidhi (एकादशी पूजा विधि) –
- देवशयनी एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए।
- भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
- व्यक्ति को पूरे दिन स्वच्छ रहना चाहिए।
- देवशयनी एकादशी की व्रत कथा सुननी या पढनी चाहिए।
- फलाहार बिना नमक के बनाना व सेवन करना चाहिए।
- भक्त को रात में जागकर भगवान विष्णु से अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करनी चाहिए।
Conclusion of This Article (आपने जाना)
Devshayani Ekadashi Vrat Katha से आज हमने जाना की एकादशी व्रत को धारण करने से कैसे मनुष्य के पाप कर्मों का नाश होता है व उनके जीवन में खुशहाली बढती है। इसके अलावा इसमें हमने आपके लिए एकादशी पूजा विधि का तरीका भी बताया। उम्मीद करते है आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा तो प्लीज इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करे और हमें भी बताएं की यह आपको यह कैसा लगा।
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