भगवान विष्णु चार महीने की अल्प निंद्रा के बाद एकादशी के दिन ही अपनी निंद्रा से जागते है इसी दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते है।
3 नवम्बर 2022 को सुबह 09:30 से, 4 नवम्बर 2022 को शाम 06:08 तक रहेगा।
देवउठनी एकादशी से ही सारे शुभ और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते है, जैसे – विवाह आयोजन, गृह प्रवेश, मुंडन, जनेऊ, नामकरण आदि। इस दिन तुलसी विवाह किया जाता है, ऐसा करने से दांपत्य जीवन सुखी रहता है
प्राचीन समय की बात है एक लड़की थी जिसका नाम था वृंदा। वह भगवान विष्णु की बड़ी भक्त और पतिव्रता स्त्री थी। वृंदा के पति का नाम जलंधर था।
जलंधर राक्षश कुल का था। एक बार देवताओं और राक्षशो में युद्ध हुआ, जब जलंधर युद्ध में जाने लगे तो वृंदा ने यह संकल्प लिया की जब तक जलंधर युद्ध लडेंगे वह पूजा अनुष्ठान करती रहेगी जलंधर के वापस आ जाने तक।
वृंदा के तप से देवताओं की हार होने लगी अपनी इस समस्या के उपाय के लिए वे सब विष्णु जी के पास पहुंचे इस पर विष्णु जी ने जवाब दिया की वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ कोई छल नहीं कर सकता
देवताओं के बहुत आग्रह करने पर भगवान विष्णु ने स्वयं जलंधर का रूप लिया और वृंदा के पास गए। जैसे ही वृंदा ने देखा की जलंधर लौट आए है , वह पूजा से उठ गयी और उसका संकल्प टूट गया जिसके कारण जालंधर मारा गया
जब वृंदा को पता चला की भगवान विष्णु ने उसके साथ छल किया है उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया, पर सभी देवताओ और लक्ष्मी जी के आग्रह पर वृंदा ने अपना श्राप वापिस ले लिया और सती हो गयी।
विष्णु जी से इसे तुलसी नाम दिया और कहा की आज से मेरा पत्थर रूप शालीग्राम व इसे तुलसी कहा जाएगा। तुलसी और शालीग्राम को साथ में पूजा जाएगा। तब से ही उनका विवाह शालीग्राम से कराया जाता है।